बृहदेश्वर मंदिर: इतिहास, स्थापत्य कला और धार्मिक महत्व | Brihadeshwara Temple in Tamil Nadu | तमिलनाडु का अद्भुत धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल
तमिलनाडु का अद्भुत धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल | Brihadeshwara Temple
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बृहदेश्वर मंदिर |
बृहदेश्वर मंदिर: ऐतिहासिक धरोहर और स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण
भारत एक समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर से भरपूर देश है, जहां विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल देखने को मिलते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण स्थल तमिलनाडु राज्य के थंजावुर जिले में स्थित बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeshwara Temple) है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि अपनी शानदार स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। इस लेख में हम आपको बृहदेश्वर मंदिर के इतिहास, स्थापत्य कला, और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से बताएंगे।
बृहदेश्वर मंदिर कहाँ है?
बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु राज्य के थंजावुर (Thanjavur) जिले में स्थित है। यह मंदिर थंजावुर शहर के केंद्र से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां साल भर श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भारी भीड़ रहती है। यह मंदिर शहर के प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, जिसे "राजा राजेश्वरम मंदिर" भी कहा जाता है।
बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण किसने किया था?
बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण राजराज चोल प्रथम (Rajaraja Chola I) ने 1010 ईस्वी में करवाया था। राजराज चोल एक महान सम्राट थे, जिन्होंने चोल साम्राज्य को अत्यधिक समृद्धि और शक्ति दी। उन्होंने इस मंदिर को अपने साम्राज्य की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के रूप में बनवाया था। यह मंदिर चोल साम्राज्य की स्थापत्य कला और शक्ति का प्रतीक है। बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण इस सम्राट के शासन काल में हुआ और इसका मुख्य उद्देश्य भगवान शिव को समर्पित था, जिसे इस मंदिर का मुख्य देवता माना जाता है।
बृहदेश्वर मंदिर किस भगवान को समर्पित है?
बृहदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान शिव की विशाल लिंगम प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर के विभिन्न हिस्सों में भगवान शिव के विविध रूपों की मूर्तियों और चित्रों की झलक देखने को मिलती है। मंदिर का मुख्य आकर्षण भगवान शिव की मूर्तियों और उनके संबंध में बने अद्भुत चित्रकला के उदाहरण हैं।
बृहदेश्वर मंदिर की स्थापत्य कला
बृहदेश्वर मंदिर की स्थापत्य कला अत्यंत अद्भुत और उत्कृष्ट है। इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ स्थापत्य शैली में किया गया है, जो दक्षिण भारत की विशेष स्थापत्य शैली है। बृहदेश्वर मंदिर में विशाल पत्थरों का उपयोग किया गया है और मंदिर की दीवारों पर विभिन्न धार्मिक दृश्यों और भगवान शिव के चित्र अंकित हैं।
मंदिर का मुख्य गुंबद
बृहदेश्वर मंदिर का सबसे प्रमुख हिस्सा इसका विशाल गुंबद है, जो लगभग 66 मीटर ऊंचा है। यह गुंबद मंदिर के शिखर पर स्थित है और इसे कुबेरा शिखर कहा जाता है। इस गुंबद का वजन लगभग 80 टन है, और इसे एक ही विशाल पत्थर से बनाया गया है। इसे बिना किसी आधुनिक तकनीक के और पूरी तरह से मैन्युअल तरीके से स्थापित किया गया था, जो उस समय की अत्यधिक विकसित तकनीकी कौशल को दर्शाता है।
मंदिर के स्तंभ और कक्ष
मंदिर के भीतर विभिन्न स्तंभ और कक्ष बनाए गए हैं, जिनमें अद्भुत उकेरे हुए चित्र और मूर्तियां देखने को मिलती हैं। इन कक्षों में भगवान शिव के विभिन्न रूपों को चित्रित किया गया है। मंदिर के मुख्य कक्ष में एक विशाल शिव लिंग स्थित है, जो हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक पूज्य है।
बाहरी दीवारों पर चित्रकला
मंदिर की बाहरी दीवारों पर कई चित्रकला के उदाहरण हैं, जो शास्त्रीय हिंदू चित्रकला और वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण हैं। इन दीवारों पर भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनके कई दिव्य गुणों का चित्रण किया गया है। इन चित्रों में भगवान शिव के साथ उनके परिवार, देवी पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियों का भी चित्रण किया गया है।
बृहदेश्वर मंदिर का इतिहास और महत्व
बृहदेश्वर मंदिर न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि इसका इतिहास भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मंदिर चोल साम्राज्य की महानता का प्रतीक है, और इस मंदिर के निर्माण से पहले चोल साम्राज्य के राजा राजराज चोल ने भारत के दक्षिणी हिस्से में कई धार्मिक और सांस्कृतिक सुधार किए थे।
इस मंदिर का निर्माण राजराज चोल द्वारा कराए जाने के बाद यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन गया, जो आज भी लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है। बृहदेश्वर मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए, इसे 1987 में यूनाइटेड नेशंस एजेंसी यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया।
बृहदेश्वर मंदिर की विशेषताएँ
- विश्व धरोहर स्थल: बृहदेश्वर मंदिर को 1987 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- आधुनिक तकनीकों का अभाव: मंदिर का निर्माण बिना किसी आधुनिक तकनीक के हुआ था। इसका हर हिस्सा हाथ से तैयार किया गया था, जो उस समय की स्थापत्य कौशल को दर्शाता है।
- विशाल शिव लिंग: मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शिव लिंग है, जो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
बृहदेश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय स्थापत्य कला और इतिहास का अद्भुत उदाहरण भी है। इसकी विशालता, उसकी अद्भुत वास्तुकला, और इसके धार्मिक महत्व ने इसे एक अनमोल धरोहर बना दिया है। यदि आप भारतीय संस्कृति, धर्म और स्थापत्य कला में रुचि रखते हैं, तो बृहदेश्वर मंदिर का दौरा आपके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव साबित होगा।
FAQs:
-
बृहदेश्वर मंदिर कहाँ स्थित है?
- बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु राज्य के थंजावुर जिले में स्थित है।
-
बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण किसने किया?
- बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण राजराज चोल प्रथम ने 1010 ईस्वी में किया था।
-
बृहदेश्वर मंदिर किस भगवान को समर्पित है?
- बृहदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
-
बृहदेश्वर मंदिर की स्थापत्य कला कैसी है?
- यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में निर्मित है, जिसमें विशाल पत्थरों का उपयोग किया गया है और मंदिर की दीवारों पर धार्मिक चित्रकला उकेरी गई है।
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